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Aap Bhi Amar Ho Sakte Hain...!

Posted on 18-Aug-2018 04:51 PM
आप भी अमर हो सकते हैं...!
 
अभी कुछ दिनों पहले ही तारा संस्थान के ऑफिस में मेरे पापा आदरणीय डॉ. कैलाश जी ‘‘मानव’’ आए थे। उनके साथ अनौपचारिक बातचीत चल रही थी जिसमें मैं, दीपेश जी और पापा ही सम्मिलित थें। बातों बातों में पापा ने कहा कि बेटा हम सब एक अच्छा काम कर रहे हैं और ये अच्छा काम हैं वो हमेशा चलता रहेगा, हम रहे या न रहें, काम आगे चलता रहेगा। हमारे जाने के बाद भी नारायण सेवा के माध्यम से न जाने कितने विकलांग बच्चों के ऑपरेशन होते रहेंगे और तारा के माध्यम से भी बहुत से बुजुर्गों को नैत्र ज्योति मिलती रहेगी और सैकडों हजारों बुजुर्गों की सेवा वृद्धाश्रम के द्वारा होती रहेगी। और ये सब कहने के बाद उन्होंने बहुत ही साधारण तरीके से एक बात कही जिसका मर्म उतना ही असाधारण था। उन्होंने कहा ‘‘बेटा ऐसे ही तो व्यक्ति अमर हो जाता है न.... कि वो एक अच्छा काम शुरू करे और उसका वह काम उसके न रहने पर भी होता चला जाए’’।
उनके इस कथन में कहीं भी ये भाव नहीं था कि अच्छे काम करो तो लोग आपको याद करेंगे उनका मतलब यह था कि अच्छे काम शुरू करो तो वे काम हमेशा जीवित रहेंगे और उनसे लोगों का भला होता रहेगा। इसको हम सरलता से समझें तो एक व्यक्ति कोई फल का पेड़ लगाए तो वह पेड़ वर्षों तक फल देता रहेगा। जो भी उस पेड़ के फल का आनन्द ले रहा उसे ये पता हो कि नहीं कि पेड़ किसने लगाया लेकिन उसे फलों का सुख तो मिल रहा है ना? तो बस ऐसा ही कुछ सेवा में हैं....।
पापा ने ‘‘नारायण सेवा’’ प्रारंभ की, फिर ‘‘तारा’’ का जन्म हुआ। दोनों ही से कुछ बेहद जरूरतमंद लोगों को लाभ मिल रहा है और जब तक ये कार्य होता रहेगा लोगों को सुकून इनके माध्यम से मिलता रहेगा। इससे बड़ा अमरत्व क्या होता है कि आपके द्वारा प्रारम्भ किए गए अच्छे काम सदा-सदा के लिए चलते रहें फिर किसने प्रारम्भ किया, कौन चला रहा है, और कौन मदद कर रहा है, ये सब गौण हो जाता है। मुख्य ये होता है कि किसी जरूरतमंद को लाभ मिल रहा है और उसके चेहरे की मुस्कुराहट, उसके अंतर्मन से मिलते आशीष सबको सुख देते है, ये बिल्कुल पक्का है।
पापा के साथ जब भी बातचीत होती है तो साधारण शब्दों में अकसर वो कोई गहरी बात कर देते हैं और ये जो बात है अमर कर देने वाली वो बेहद अच्छी लगी तो लगा आप सबसे भी बाँट लूँ। बचपन में पढ़ते थे कि देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया अमृत पाने को, ताकि अमर हो जाऐं.... वैसे वाले अमर तो होते हैं या नहीं, ये पता नहीं है लगता भी नहीं कि वैसे वाला अमर होना भी चाहिये। कम से कम मुझसे कोई पूछे तो मैं नहीं होना चाहूँंगी क्योंकि ईश्वर ने जिस तरह का जीवन दिया वो बेहतरीन है.... बचपन, जवानी, बुढ़ापा सबके अपने अपने सुख-दुःख हैं और अवश्यंभावी मृत्यु का नियम भी प्रकृति का संतुलन बनाए रखता है। वरना सभी अमर हो जाते तो पृथ्वी पर जगह ही नहीं बचती, फिर तो बस नव सृजन को रोकना पड़ता। लेकिन जैसे पापा ने बताया उस तरह का अमर सभी मनुष्य होना चाहे तो सोचिए कितना सुंदर समाज बन जाए कि कहीं भी कोई दुःखी हो तो तुरंत एक हाथ उसकी तरफ बढ़ जाए....
 
कल्पना गोयल

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